History of Agrias

HISTORY OF AGRIAS
PART - 2
Journey Towards ODISHA & CHHATTISGARH
(Before reading this you must have to read Part - 1)

---अघरिया उसी समय से वर्तमान छत्तीसगढ़ व पश्चिमी उड़ीसा के सीमांत क्षेत्रों में निवासरत है।
---अघरिया का 84 परिवार वहां पर निवासरत थे जिन्हें ---84 घर अघरिया कहा गया
जिनके वंशजों में
~6 परिवार ने चैधरी,
~60 परिवार ने पटेल तथा
~18 ने नायक का उपनाम धारण किया।
---इसमें 44 परिवारों ने पश्चिमी उड़ीसा तथा शेष परिवारों ने छत्तीसगढ़ के तत्कालीन बिलासपुर तथा रायगढ़ के सीमांत अंचलों में बस गए।
---उस समय उड़ीसा में हिंदू शासक राज्य करते थे। ~तत्कालीन शासक गजपती राजा मुकुंददेव के पास अघरिया परिवार के मुखिया ने यहां बसने व जीवकोपार्जन को लेकर जगह की मांग की ।
~ तब राजा ने उसके सामने दो विकल्प रखा,
------प्रथम रजत जडि़त तलवार व
------दूसरा – स्वर्णजडि़त लकड़ी का डंडा रखकर एक चुनने को कहा।
---तब अघरिया परिवार के मुखिया ने स्वर्णजडि़त लकड़ी के डंडे को चुना जिसके कारण राजा ने लकड़ी के हल के विकल्प के रूप में कृषि कार्य अर्थात हल चलाने का आदेश दिया।
---तब से अघरिया समाज ने जीवनयावन के लिए खेती को चुना जिसका परिणाम स्वरूप मेहनती अघरिया को वर्तमान में श्रेष्ठ किसान की ख्याति प्राप्त है।
---अघरिया परिवारों को राजा मुकुंददेव ने सर्व प्रथम वर्तमान झारसोगड़ा जिले के ग्राम लैदा की जमीनदारी सौंप दिया।
--कालान्तर में उनके उधमी एवं परिश्रमी स्वभाव के कारण विभिन्न गांवों की मालगुजारी (पटेल, नायक और चैधरी उपनाम) मिलती गई।
---अघरिया गुजरते समय के साथ उड़ीसा के साथ ही वर्तमान छत्तीसगढ़ के पूर्व अंचल में अपना विस्तार करते गए, परिणामस्वरूप आज वर्तमान छत्तीसगढ़ के रायगढ़, महासमुन्द, जांजगीर-चाम्पा, बिलासपुर जिलों के अतिरिक्त जशपुर, रायपुर आदि जिलों प्रभावशाली समाज के रूप में विद्यमान है।
---जो अखिल भारतीय अघरिया समाज नामक संगठन के तहत अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा व मान-सम्मान के साथ सामाजिक मान्यताओं के रक्षण पोषण करती हुई विशाल समाज का परिचय दे रही है।
---उड़ीसा के कई जिलों में निवासरत अघरिया बंधु भी इसी सामाजिक संगठन से जुड़कर नियम परंपराओं का पालन कर रहे है।
---अघरिया वेश भूषा-संस्कार, विसौंधी परंपरा-अघरिया तन ढ़कने के लिए शुरूआती तौर पर ब्राम्हणों की तरह पोतिया तथा कंधे पर गमछा रखते थे, साथ ही जनेऊ धारण करते रहे थे ।
---जिसे कालांतर में खेती के कार्य में संलग्न होने से आ रही कठिनाइयों के मद्दे नजर अपने ही एक परिवार को अघरिया परंपरा व संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखने के आशय से यह कह कर – कटार व जनेउ को सौंप दिया कि वे वह अघरिया सभ्यता व संस्कृति के अनुरूप संस्कारों का पालन करते हुए उनका रक्षण करे जिसके एवज में प्रत्येक अघरिया परिवार अपने आय के 20 अंश में से 01 अंश उसे देकर उसके व परिवार के जीवन यापन की व्यवस्था करेगा।
---फलस्वरूप उस परिवार को विसौंधी उपनाम दे दिया गया।
--जिनके वंशज आज भी रायगढ़ जिले में निवास कर रहे हैं ।
---जो पूर्व में अघरिया परिवार के बीच शादी विवाह के रस्मों को संपादित कराते रहे हैं ।
---यद्यपि वर्तमान में यह व्यवस्था गुजरते समय के साथ समाज में कमतर दिखाई दे रहा है।
--- फिर भी हमें उन्हें समाज के मुख्य धारा में लाकर अपने वर्तमान पीढ़ी से परिचय कराना हमारे संगठन का सामाजिक दायित्व है।
---अघरिया स्वभाव-अघरिया प्रारंभ से ही स्वाभिमानी होने के साथ ही ईमानदार, निष्ठावार व्यक्ति रहा है, जिसके मन में हमेशा अपने सहयोगियों व निष्ठावान व्यक्ति रहा है, जिसके मन में हमेशा अपने सहयोगियों व मातहतों के लिए आदर के साथ सहानुभूति कूट-कूट भरी रही है परिणाम स्वरूप वह हमेशा अपनों की बीच मुखिया बना रहा है जो कि उनके द्वारा धारित उपनाम चैधरी, पटेल, नायक के विश्लेषण से दर्षित होता है जिसका अर्थ है नेतृत्व करने वाला याने मुखिया । -  जिससे कालांतर में गांव के गौंटिया के नाम से आज भी संबोधित किया जाता है।
---अघरिया ने अपने 84 परिवारों में से
~6 ने चैधरी,
~60 ने पटेल व
~18 ने नायक का उपनाम स्वीकार कर अपने गोत्र को धारण किया जो आज भी सामाजिक संस्कारों में
--मान्यता के साथ ही उसके वंशज अपनाए हुए हैं।
Thank you so much for showing great response toward's Part - 1
Part - 3 will be published soon...
By
History of Agria's
Source ~Internet

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    1. Thanks for your reply. It means a lot for us. If you do like this blog please share this with your relatives. Thank you.

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